थूं अर म्हैं पाळ्यो

हजार-हजार रंगां रौ

अेक सुपनो।

थारी अर म्हारी दीठ रौ

थारै अर म्हारै सुपनां रौ

अेक घर हौ

जिको अबै धरती माथै

कदैई नीं चिणीजैला।

मां कैवै-

मूरखता है

घर थकां रिंधरोही मांय हांडणौ।

बाळ दे- नुगरा सुपनां नै

जिका दिरावै थाकैलो

अर करावै

बिरथा जातरा।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम