आया अर् सोग्या उल्टी,
ले'र कळोटां ऐ गणगौर!
कुण की दम पै उछब करूं,
साजन अणबोला,ऐ गणगौर॥


म्हसूं आछी मीरा पूजा कर-कर मरी बच्यारी।
कै सोड़ का सपनां मं राजी होती नणद-कुंवारी।
ऐक सबर ईं मन कै आतो ग्या रूस्या बनवारी।
म्हारा बिन बान्ध्या रहग्या माथा का-
आंटी-डोरा ऐ गणगौर।
आया अर् सोग्या

कै सोक्यां का बलमाया कै जोग ले'र बणग्या साधू।
नज़र मलै तो डील पावसै कींखै मस कामण बांधूं।
कतनों मारूं मान और म्हूं कतनों हिवड़ो रांधूं।
म्हारा बिन बरत्या रहग्या ई तन का-
कळस-बजौरा ऐ गणगौर!
आया अर् सोग्या…

पहली छोको काजळ-बिन्दी करतां छावै छी अन्हाळ।
बिन संवर् यां दमकै छी म्हारी आठूं पहरां चत्तरसाळ।
अब यांकी नादानी बणगी म्हारा जोबण पै जंजाळ।
बिन चौतारां फीका लागै-
मूंण-मजीरा ऐ गणगौर!
आया अर् सोग्या...

सौळा दन को करै रूसणों सतरा दन की मांडै राड़।
रूत की रातां यूं जावै री जी सूं अखरै बार-थूवार।
आंसू मं गमगी जिन्दगाणीं कहती या दुखियारी नार।
ऐक होव तो कहूं ओळमां-
लाख-करोड़ां ऐ गणगौर!
आया अर् सोग्या उल्टी-
ले'र कळोटां ऐ गणगौर…!

स्रोत
  • सिरजक : विष्णु विश्वास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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