ग़ालिब म्हारा
इश्क बतावै
घणो ऊंडो छै
इश्क को दरियो
गेलो आडो-ऊलो
बळती लाय बतावै
ऊं सूं बारै जा’र खडो!
गालिब म्हारा
ऊं सूं बारै खड आवै
जुल्फा का ये
पैचो कम छै
देखो न्याळा न्याला
रात पड़यां दारूड़ी झलकै
झलकै मद का प्याला
ग़ालिब गजलां नैं गावै
अरे लट नैं सुळझावै।