म्हांरी आ जिनगाणी !
पाणी ! पाणी ! पाणी !
म्हे मरुधर रा वासी।।
उतर चानणी आभै सूं,
बेरो कठै नीं अटकै ?
म्हां रै गाँव री गळियां में,
तो अँधारो ई भटकै!
काळ पड़ै, घर-घर नाचै,
सरणाटो सत्यानासी।
म्हे मरुधर रा वासी।।
सूरज री किरणां साथै,
जद बाळू रास रचै।
तिरसी आँख्यां में पाणी रा,
सिर्फ सवाल बचै।
भाज्यौ फिरै मिरगलो मन रो,
गेलो कूण बतासी !
म्हे मरुधर रा वासी।।
सावण सुरंगो जद-जद बरसै,
काळ री कड़तू टूटै।
अै ई धोरिया देवां सिरखा,
बण जगती नै तूठै।
आ ई धरा सुरग बण जावै,
ब्रिन्दावन अर कासी।
म्हे मरुधर रा वासी।।