बापड़ी गऊ!

तिस्सा मरती,

भूखां मरती,

झिखै आपरै

धणियां नै।

हाड निकळग्या,

चाम चिपग्यो,

रोवै आपरै

धणियां नैं।

धक्का खावै,

भूंवाळ्यां आवै,

पड़गी बैसकै!

आंख्यां सूं छूट्या चौसरा।

वा पूछै-

इतरा नुगरा

क्यूं हुयग्या

कांई म्हारो दोस ?

सिंझ्या-सुवारै

घरै जाऊं

मिलै म्हनै सोट

बापड़ी बाखड़ी

मूंढो ऊंचो कर सोचै

वाह रै! म्हारा

गऊ पाळक देस !

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : नमामीशंकर आचार्य
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