बापू!
थारा सिद्धांता नै
सगळा जाणै,
सत्य-अहिंसा-सत्यागृह नै
खूब बखाणै!
स्वदेशी री धजा फैराता
नीं समावै,
पण खुद रै जीवण में खादी
नीं बपरावै...
आंख-कान-मूंढा अब कोनी
ध्यान लगावै
मजबूरी रो नांव आपरो नांव बतावै!
सरब-धरम-समभाव राखता
बापू थे तो,
जात-पांत रो जै'र
उगळ रैया है अै तो!
बै धन लूट बिदेसां लेयग्या,
अै धन लूट बिदेस पुगावै!
बापू...
थांरा आं बेटां नैं कुण समझावै..!
मानवता रो गांधी-मारग
अजब-अनूठो,
इण माथै चालणियो अब क्यूं
फिरै अपूठो?
सत्य-अहिंसा- बळ री सबळी
अलख जगावै गांधी-मारग!
अस्तेय-अपरगृह- स्वच्छता रो
बिगुल बजावै गांधी-मारग!