सैर रै चाळै लाग्योड़ौ

बढ़ रियौ है

आतम-घात कानी

हौळे-हौळे गांव

नै अब

सुहावै कोनी

नाडी री काची पाळ

नै लागै कोनी औपती

गारा आळी भींता

अणखावणा लागै

नै ढांढा-ढोर

गोबर पोठां री बास

मांयै आवै नै उबकाई

बी चावै'क बड़-पीपळ नीम री जग्या

रोपीजै अंगरेजी रूंख

अेक दूजा रै घरां ऊं

भेंटती गळियां मांयै अबै घूटीजै

इण रौ जीव

गांव चावै रातौ-रात

बणणौ समारट चकाचक सैर

आड़ै पडयोड़ौ

आतम घात कानी दौड़ रियौ है गांव।

स्रोत
  • सिरजक : आशा पांडेय ओझा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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