अेक रंग थारै नांव रो

थारे धणियाप रो

फिरूं ओढ़’र

है तो है

जीवण में बसंत

जियां हर रंग

अेक आप रो रंग है

जिण पर नीं

चढ़ै कोई रंग

आया हुवैला

घणां रंग जीवण में थारै म्हारै

पण नीं हुयो कोई भी रंग

आपा सो सुरंग

मीत।

आप सूं है हेत हरदम

इयां निभायज्यो प्रीत

स्रोत
  • पोथी : पैल-दूज राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : सीमा भाटी ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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