धरम, धन, धरती लूटै रै जागीरदार जी!

धरम्, धन, धरती लूटै रै जागीरदार जी!!

बहन बेटी रूप की नै, ताकै ये सरदार।

आधो जोबन गोला मांगै, सारो जागीरदार॥

आंख दिखावै, डांटै—डपटै ललकारै फटकारै।

रोबां तो रोबा भी दे, ठाकर ठोकर मारै॥

गाळ्यां काडै जूता मारै, मार उडा दे बाळ।

इज्जत लूटै, चमड़ी फाड़ै, हाय, उधेड़ै खाल॥

मा—बहण्या कै सामै आवै, दे मूंछ्या पै ताव।

घर ले लै, वे दखळ करा दे, और छुड़ा दै गांव॥

लोभ कै क्षोभ नहीं रै, बढ्यो पाप को भार।

बीघा का दो बीघा मांडै, करै अेक का चार॥

भभकी दै पट्टा मांडै, धमकी दे दे लूटै।

बांध बूज कर कड़तौ मांगै, ढांडा ज्यूं फिर कूटै॥

जागीरी में जीबा सूं तो, भलो कुवा में पड़बो।

जागीरी का गांव सूं तो, भलो नरक में सड़बो॥

टीकायत जागीरी भोगै, बैठ्यो मोज्यां माणै।

छोटा का दिन खोटा आवै, नौकरियां मैं ताणै॥

टीकायत तो शान बघारै, छुट भैया लाचार।

सगा भाई सूं भेद बढ़ावै, जागीरी धिक्कार॥

स्रोत
  • पोथी : हाड़ौती के प्रमुख स्वतंत्रता सैनानी | स्वतंत्रता संग्राम गीतांजली ,
  • सिरजक : मांगीलाल निरंजन ,
  • संपादक : सज्जन पोसवाल / मनोहर प्रभाकर ,
  • प्रकाशक : राजस्थान स्वर्ण जयंती समारोह समिति, जयपुर / राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर (राज.)
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