प्रकृति री

राथा-पोथी संभाळतो

वन-वन री

संस्कृति रा

नित जस गातो

आखिर

म्हैं बणूं बळीतै रो जोग

पण म्हनै क्यूं काटै है लोग।

असवाड़ै-पसवाड़ै

फेळ बुई ऊभी

सोगन है

थूं मुरझाए मती

मुरझायां पछै

कुण राखसी म्हारी सोग,

पण म्हनैं क्यूं बाढै है लोग।

म्हारी रेशम जैड़ी

फोगेसी धोळी बैकळू माथै

झड़ जावै,

नूंवै जीवण रो संदेसो लावै

फक फोगेसी काटै सात रोग,

म्हनैं क्यूं बाढै लोग।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : संग्राम सिंह सोढा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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