उगमता सुरजी रै

उजास में

आंख्यां चुंधीजै

अंधारो

इत्तो चोखो क्यूं लागै

स्यात इणी में

लुकमीचणी खेलतो

म्हारो सुपनों

म्हारै मन रो

च्यानणों है।

पड़तख दीखतो खेत

म्हनै सांचो नीं लागै

सुपनां आळा

सगळा बाग-बगीचा

म्हनै सांचा क्यूं लागै?

आं जाळ-जंजाळां में

म्हारो काचो मन

कठै

उळझ तो कोनी गयो?

स्रोत
  • पोथी : चौथो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : सिया चौधरी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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