गंगाराम खुमार

बात-बात मं

गधा की बात खैवै

आंख्यां मीचै

पसीना सूं भीज जावै—

“छोराओं!

भारी बणी रै जीवण मं!”

आंगळी देखै तो

माटी को चेत आवै

चाक चालै

हांडी बणै, मटका बणै

जाणै कांई-कांई बणै

गंगाराम मन ही मन राजी होवै

वाह रे वाह बिधाता!

तूनै ही जग बणाया

गंगाराम गधा कू ले’र

जैपर कनै लूणियावास

मेळा में गयो

मोल-ताल करै और गधा कू देखै

ओजूं मोल पूछै और माटी को चेत आवै

भाई जिस्यो जोड़ीदार

अस्सी को बिक्यो और सौ को खरचो

हुयो...

गंगाराम रोवै और खवै—

“माटी-सो जीवन है

माटी की याद

माटी में मिलैगी

तू कांई को भरम करै-मनख!”

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : अमर दलपुरा
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