अै भंभूळिया

जीवण रो

साचो अरथ समझाता थका

भंवता फिरै,

तावड़ा री लाय मांय

खूख्योड़ा खेत-खळा

रूंख-सरोवर

अर काचा-पाका

मकानां मांय

जा’र समझावै—

जिनगाणी रो ठावो अरथ

अर चालता रैवै

अेक घर सूं दूजै मांय

अेक गळी सूं दूजी गळी मांय

पण

अजै तांई

नीं समझ सक्या

अै दुनियावाळा

कै आपणो जीवणो भी

ढब जासी अेक दिन

आं भंभूळियां री भांत।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सत्यनारायण ‘सत्य’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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