सड़क बिचाळै

फुटपाथ पर बैठ्यै

बाप रा सुपना

होग्या ईंट रा,

सिमटगी सोच

अेक कमरै मांय।

अेक कमरो बण्यां पछै

नीं दिखै

कमरै रै बा'र स्यूं

फाट्योड़ा गाभां मांय

लगोलग जुवान होवती

वीं री तीन छोरियां...

नीं दिखैला वै सारा

पाणी स्यूं

पेट रो खाडो भरता।

छात अर भीतां लुको सकै

वांरा केई दुख,

अे बातां

कदैई नी जाणै

महलां मांय रैवणवाळा।

चौभींतै अर छात री कीमत

जाणै है

आसमान री छात तळै

फगत अेक

बूढो बाप।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : जितेन्द्र कुमार सोनी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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