अन-धन को अकाळ पाणी नैणां में घणौ

सबकी सुणबा हाळा अब म्हारी भी सुणौ

काळी काळी रातां में म्हां घणी करी रुखाळी

धरती माता अन उपजावै म्हां तो छां बस हाळी

अबकी इन्दर राज रूसग्या गेहूं ना चणो

सबकी सुणवा...

रीता होग्या नद्दी नाळा पनघट होग्या खाली

गायां भूखी ऊबी खूंटै हाळी की बदहाळी

रोळी घोल तिलक काढ़ां पण रोवै मन घणौ

सबकी सुणवा...

बचपन से आगणियै थारै सख्यां संग रंभाई

आज बिदा में पाछी फर-फर आंख्यां भर-भर आई

आंख्यां हळकी होगी थांकी पण मन में दरद घणो

सबकी सुणवा हाळी अब म्हारी भी सुणो

अन-धन को अकाल पाणी नैणां में घणौ

सबकी सुणबा हाळा अब म्हारी भी सुणौ।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : उर्मिला औदीच्य ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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