धान घणौ उपजावै कुण?

पेट नहीं भर पावै कुण?

हाथां वस्त्र बणावै कुण?

फिर नागौ रह जावै कुण?

सब नै सुख पहुंचावै कुण?

उण करसै री बातां सुण।

हुकम दे चुकी है सरकार,

इण सूं मत लीजौ बेगार,

फिर भी मुफ्त लाद दे भार,

अहलकार वौ जागीरदार,

दुखड़ौ सहलावै कुण?

उण करसै री बातां सुण।

अफसर अठी-उठी जावै,

मोटा-मोटा भत्ता पावै,

खूब सामान साथै ले जावै,

नहीं जबान हिलावै कुण?

उण करसै री बातां सुण।

साथ अगर व्है घोड़ी-घोड़ौ,

चार नहीं चहिजैला थोड़ौ,

खूंटा रौ वो मार हथोड़ौ,

काम करौ या भुगतौ फोड़ौ,

जबरन जोत्यौ जावै कुण?

उण करसै री बातां सुण।

करै ठिकाणां में जो वास,

खोद-खोद नित लावै घास,

जो ना देवै वो बदमास,

उण रौ होवै सत्यानास,

इण सूं चुप रह जावै कुण?

उण करसै री बातां सुण।

इण री बात सुणावै कुण?

ध्यान राज रै लावै कुण?

नित रो दुख मिटावै कुण?

नहीं समजै म्हैं हूं कुण?

उण करसै री बातां सुण।

स्रोत
  • सिरजक : जयनारायण व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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