गांवा मे घर-घर उमगार्‌यो

गळिया मे नर-नर हरखार्‌यो

भूआ बेळ्या चाकी झोवै,

घम्मड घम्मड दही बिलोवै

पाया पली खोल ओबरी,

घडस्यो कादो-रोटी खार्‌यो

खडी-खडी गा-भैसा चर री

चर-चर धार दुहारा भर दी

लेकर जलम मर्‌यो क्यू पाछो,

दुनिया रो मालिक पिछतार्‌यो

हरखी-हरखी फिर कामणी

भरी दूध री ज्यू कढावणी

उठै कूरियै सै धुवासो,

जग्य जाण बादळ भरमार्‌यो

करी किसाना मीनत पूरी

इन्दर सेठ चुकाण मजूरी

राजी हो-हो बिरखा री

बूदा री म्होरा बिखरार्‌यो

हळ ले चाल पड्या है हाळी

घर्‌या टेचरा करै रूखाळी

जा री हासी सुण’र, सुरग मे

नन्द जसोदा सै बतळार्‌यो

भाग्या टीगर टिक्कड खाकै

चुपकै-चुपकै कान लगाकै

सुणै मोतियो, चिमनू काको

अळगोजा पै मरवण गार्‌यो

नित्त बडी है, कण-कण बचै

धणी कमाव पण बण सचै

जण-जण जोतै, कण-कण बोव

मण-मण काट घरा ले आर्‌यो

साझ पड्या भेला हो ज्यावै

आप-आप री बात सुणावै

भरी पडी चोपाळ, चौधरी

हस-हस झगडा सळटार्‌यो

बीडी-चिलम-तमाखू पीर्‌यो

हासी ठठ्ठा करता जीर्‌‌‌या

मेळ बडो, सै रही मेळ स,

बडो पंच यो पाठ पढार्‌यो

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : विश्वनाथ शर्मा विमलेश ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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