म्हारो छोटो सो परिवार

जिकै में मैं, म्हारै घर आळी

एक चांद सो बेटो, चांदणी सी बेटी

गिणती रा म्हे सदस्य च्यार।

मन्नै जिसी किसी भी मिल रही है मजदूरी

करणो है गूजर राखणी है सबूरी

महंगाई री मेहर सूं

आछै-भलै लोगां का ईमान डगमगायग्यो है

अकास में उड़ाण भरणियां

लट्ट देणी सीधा जमीन पर आग्या है।

टाबराँ नै‘ढंग-ढालै’ री इस्कूलां में पढ़ाणो है

बीया नै आदर्श नागरिक बणाणो है

खान-पान चायै हळको होवै

पण! होवणा चायै निरमळ-विचार।

डोळ सारु सिर घुसोणै खातर

एक आछो सो मकान ले राख्यो है

आया-गया री—आव भगत सारु

फलकां नै भी थोड़ो-भोत भांख्यो है

माड़ी मोटी बचत करके

भविष्य खातर भी कीं बचार्‌यो हूं

जीयां कीयां जिन्दगी नै

अपणी औकात मुजब जंचर्‌यो हूं।

पराधीन होणो सबसूं बड़ो पाप है

मुं-वाणी पड्यै री पीठ पर, घोड़ै री एक टाप है

बस सागै चालसी,भलमणसाईं

बण के रहणो है मिलनसार।

जिन्दगी की सगळी गर्द

हाथां सूं ही बुहारूंगा

दो पइसा मांगण खातर

कदै हाथ नी पसारूंगा।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : धनञ्जय वर्मा ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
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