स्कूल मांय मास्टर

घर मांय मां-बाप

पूरी जूण

समझांवता रैया

हिवड़ो साफ राखो।

म्हे आखी जूण

साफ राख्यो

हिवड़ो,

कपड़ा-लत्ता

अर डील-डोळ

भळै मैला-कुचैला रैया।

हालत कै

आज लोग

म्हारै सूं

अपणायत री

बात नीं करै

कूड़ी तो घणी करै

पण, स्यात नीं करै।

अब ठाह पड़ी

हिवड़ो नीं देखै कोई

जीवड़ो नीं देखै कोई

सब देखै चैरा

जका रोज बदळै।

स्रोत
  • सिरजक : मनोज पुरोहित ‘अनंत’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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