चाल-ढाल अऱ निजर-

बदळ गई आज समै री।

पैली री बातां होती ही लाख टकै री।

लाख-करोड़ां री बातां है-

आज टकै री।

भिणिया लोग पाणी भरता हा-

बीसी आगै।

वा रावळी टैम आज इक्कीसी लागै।

दो बीसी में दो मौर्‌यां खीसै में होती,

सुख-सांयती घोड़ा बेच-

बाखळ में सोती।

मूंघाई मंगती ज्यूं बैठी,

ड्यौढी पर राळां टपकाती।

सगळां में संतोख व्याप्त हो,

नीं थी नीयत घणै नफै री।

पैली री बातां होती ही लाख टकै री

लाख-करोड़ां री बातां है-

आज टकै री।

ढाळ-सोगरै रा सुपणा जद-

आंख्यां में झिळमिळ करता हा

वक्र! रंक-राजा, गांवां रा-

आपस में हिळमिळ रैता हा

अपणो दुख औरां नैं कैता,

दूजां रो दुख, सुण लेता हा।

पूरी जूण भूख में काढी,

तो भी सोचां बात धकै री

पैली री बातां होती ही लाख टकै री।

लाख-करोड़ां री बातां है-

आज टकै री।

सगळो खावण-पीवण सारू

सब अपणै ढब दौड़ रैया है

पूरो मुलक खरीदण सारू।

नीं फिकर करै सब रै फटकै री

पैली री बातां होती ही लाख टकै री।

लाख-करोड़ां री बातां है-

आज टकै री।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : कन्हैयालाल ‘वक्र’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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