टूटोड़ी टापरी में
ईं धरती रो धणी
हेत रा आखरां मांय
‘समाजवाद’ रा गीत—घणा सुणै
अ’र मुळकै, कै अबै
दो जूण री रोटी मांय
मीन मेख नीं है।
पण
सोने री खोड़ रो काळो रंग
इण बात रो सबूत है—
कै मेहनत करतां
घणी ‘कोयलड़ी री कूक’
निकळगी, पण
दो जूण री रोटी रो
भेंत नी बैठ्यौ।
सगळी दुनियां मांय
हर बरस पंचायती व्है
अर सगळा एकण साथै
मीठा बोले—अर
प्रस्ताव पास करै—
कै अबै
आगला आवत बरसां मांय
कोई भी मिनख
भूखौ नीं सोवेलौ।
आ खबर, फेर
उण कंकाळ रा धणी नैं
संतोख दैवे अर
थोड़ो मुळकै।
आ दीसै कै वो
‘नेहरू’ अर ‘लाल’ रो
शांति रो पाठ
कांति री ठौड़
पढ़ियोड़ौ है।
धन है उण री काया नैं
धन है उणरी मेहनत नैं
कै—वो
लोही-पसीनौ एक कर
सगळाँ रो पेट
पाळतौ नीं थाकै।