आपां

अेक बात माथै

जद बार-बार

नी हांस सका

तद ओक

दुख माथै

बार-बार रोवां क्यूं हां?

लागै

आपां जाण-बूझ'र

दुखी हां।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : दुष्यन्त जोशी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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