अंधेरां सूं भर्‌योड़ी,

मांझल रातां में,

माचा सूं उठ,

बो बीड़ी रो कश लगावतो

खैनी री चूटी दाबतो

बो सोचतो,

दिनुगै री मजूरी बारै,

भाई री फीस बारै, बै’ण रा ब्याव बारै

आडो होय, नींद री सो’च

बो फकत नींद रो नाटक करतो हो।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : तुषार पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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