अेक इमरत कळस

संजोय राख्यो हो

मन रै चंदन बाग में

फुँफकार रैया है चौफेर

बासग नाग

घुळतो जावै विस

इमरत मांय होळै-होळै

म्हैं बणती जाय रैई हूं

स्यात,अेक विसकन्या।

स्रोत
  • सिरजक : सुशीला चनानी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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