बिरखा री कमीं सूं

भूख-तिस रो वासो

नीं कर सकै

माणस नै बेमन

पण मरुधर देस में

पड़ै जद-जद

मानखै रो काळ

तद मरणो पड़ै मिनखां नै

जहर खा'र

अर पछै लारै रैवै

कुमाणस

फिरोळै जिका

मानखै री राख।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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