द्रुपद घर जलमी
अेक सुता
हरख बधायां बंटी कै नीं
आ तौ ठाह कोनी
पण
वा ही रूप री डळी,
गुणां री खांण
इणसूं कोई नीं है अजांण।
जोबन सर जद छळकण लागौ-
संजोग कैवां कै कुजोग
पांचां रै पंजाळी पंजगी
अंतस सूं अणमणी
अजै अठै ई व्हा नीं हुयौ
जुअै रै जुंवाड़ै ई जुतणौ पड़ियौ
मन मांयलै नै मार नै।
भरी सभा चीर हरण हुयौ
भीस्म अर भीम जैड़ा भड़ां छता
औ तौ भलौ हुवै कानजी रौ
उघड़ती नै उबार ली
अर
जांध पर जमावण
में सफल नीं हुया
सौ-सौ केरू!
कळजुग रै कवंळै आय ऊभी -
आज ई केई द्रौपदियां रौ
चीर हरण हुवै चवड़ै-धाड़ै
पण
इणरौ पडूतर कोनी किणी कनै
कै
कांई गुनौ व्हियौ इण अबला सूं।
अत्याचारां रै ओदण
ऊकळती रयी आजलग
भांत-भांत रा भुजंगड़ा
फिरै आपरै पास में लेवण सारू
जिण कूख सूं जाया
उणनै ई उजाड़ता जेज नीं करै
इमरत रस पीदौ जिण मुख
उणनै ई लजावण में सरम कोनी करै।
इणरौ परिणाम कांई?
जठै पीढी-पीढी पीर जलमता
वा बाड़ी बांझ हुयगी
देखतां-देखतां।