मिनखाजूण रा

सगळा उळझाड़

राग-रमाण

आयग्या म्हारै पांती

जाणै कठै सूं डोलता-डोलता

नित उठ

बम्म-पटाखारी भांत

अबखायां

कानां में करै भड़भड़ाट

फेरयूंई इणा रै पछै

हरख रो एक टुको

जाणै कठै सूं

चाणचक म्हैं पा लेवूं हूं

पछै इचरज सूं

राजी हुय'र

उप टुका नै

भर लेवूं बांथां

अंवेर लेवूं

ओळयं रै

सतरंगी सोरम रै झरोखां में

कदै-कदै मैं

कबीरी ठाठ री

टोकी माथै पूग'र

विचारूं कै बो टुको

घणो मोटो

अर लांबी उमरवाळो हुय'र

हुवै क्यूं नीं थिर।

बिजै क्यूं नीं

मिनखां रै हियै

हरख रा बीज।

स्रोत
  • पोथी : सातवों थार सप्तक ,
  • सिरजक : ओम अंकुर ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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