हिवड़ा उमग्या, गीत गूंजग्या, हरख चढ्यौ छै थ्वार कौ।

कितनी देर उजाळो देगौ, दिवलौ काची गार कौ?

जगमग करै झरोखा, घी का दिया करै संचांदणौ,

झूंपड़ियां मं मावस रोवै, भरै निसासां आंगणौ

महंगा मोलां हांसी आवै, गेलौ रुज्यौ उधार कौ।

दिवलौ काची गार कौ?

ईं कोणा मं करी दिवाळी, कोणौ अंधेरग्यौ,

तन ढांक्यौ तौ सीस उघडग्यौ, जग ओळंबौ दे 'र ग्यो,

जुडै ईं मं अरे थेकळी, आंचळ झीणा तार कौ

दिवलौ काची गार कौ?

कोरी रूई सुळग रही, पड़तां ईं रमग्यो तेल रे,

परथम पासो ऊंळो पड़ग्यो, रीत निभाई खेल रे,

मन की चींती सूं जुड़ग्यो, जाणै गठजोड़ी हार कौ

दिवलौ काची गार कौ?

हाट, हथाई, पोळ, पणघटां, हीडां हाथ पसारती,

महनत को परताप दिवाळी, लिछमी ले रही आरती,

धन पर जोत निछावर होगी, रोवै चाक कुम्हार कौ।

दिवलौ काची गार कौ?

आसा कै चौराहे बैठी, ले सांसां को सायरौ,

हेत उजाळौ करै, बुझातौ चालै छळकौ बायरौ,

झरतै नैणां चौक पुरायौ, खूण साध घरबार कौ।

कितनी देर उजाळो देगौ, दिवलौ काची गार कौ?

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : रघुराजसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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