लेता जाजो जी नानक जी भील, अरजी पंचां की,
दीजो म्हांकी अरजी परम पिता कै हाथ।
बूंदी की दुखिया परजा की कीजो सारी बात॥
डूब्यो धरम पाप छायो छै, नीत राज की खोटी।
बालक बूढ़ा पचां रात दिन, फिर भी मिलै न रोटी॥
तन ढकबा सारू न चींथरा, नान्यां डोलै नागी।
फिर भी पापी म्हांकै ऊपर, गोळ्यां भर भर दागी॥
राजो दारू पी सूतो, गोलां लूट मचाई।
सब रैय्यत नै लूट—लूट, मोटी हेल्यां बणवाई॥
भुगतो घणी दुखां में रैय्यत, अब तो कंठ तक डूबी।
मरबा सारू सत्याग्रह पर अब तो डटकर ऊबी॥
तू अनाथ को नाथ कहावै, हे तिरलोकी नाथ।
छोड़ बडां नै अब तो धरदे म्हां कै माथै हाथ॥
इतरी डाक खानबां छां म्हैं नानक थारै साथ।
दूजी डाक फेर आवै छै, कह दीज्यो या बात॥
कह दीजो जां तक म्हांकी होगी नहीं सुणाई।
मरवा ऊपर ऊबां छां सब, बाळक—लोग-लुगाई॥
धन्य धन्य थारी जननी नै मर्यो देस कै काम।
चांद सूरज बूंदी है जां तक, थारो रहसी नाम॥
डाबी का कुछ देसद्रोही, बुरो देस को ताक्यो।
दूजो मोडो, ओनाड़ी ठाकर, थां पर फंड्यो नांक्यो॥
रामकिसन हाकम, इकरामों सुपरडंट को डंक।
नाजिम धन्नालाल यां माथै, रहसी सदां कळंक॥
छोरा-छोर्यां को धोको मत लाज्यो रत्ती मन में।
वै म्हांका छै, म्हां वांका छां, ई दुख—सुख जीवन में॥
कै तो थारी बलि दुखां सूं म्हां छूट जावां छां।
दूजू मोड़ा—बेगा म्हां भी, सारा ही आवां छां॥
अब तो हो में अेक किनारा पर ही रहसी बात।
कै तो अन्याय मिटैगो, कै म्हां को सिर साथ॥