अड़दा रोटला माते

दार खावा वारा

वदी ग्या हैं

घोर मैं,

गाम मैं,

देस मैं।

कोई नती जाणतू

रोटलो क्यं थकी आवै!

कोई नती जाणतू

दार जावा वारा थकी आवैं!

डायलँ नों जमारो है

तू केम पड्यो है सानो-मनो

मारा जीव।

तारी वात तारौ विशार

नैं सालै डायलँ मैं वैसे

काड़ तू तारी माग

के बई रै सानो-मनौ

पण नकै बोल, आणंनी वात।

तू राक तारौ रोटलौ

नैं खा एकलौ-एकलौ

के देकतो रै।

जमारौ तने खाए

याद राक

जमारो डायलँ नों है

मैं तू रोटलो।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : शैलेन्द्र उपाध्याय ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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