सिर पर ऊंचायोड़ै
गळेटियै सूं लटकतो
माटी रो ढगळ
होय’र गळगळो बोल्यो कै-
‘’थूं किंया घाली चौसंगी
म्हारै पाळ्यै-पोस्यै बूंटै में...
धूड़ थारै सिर में..!’’