सिर पर ऊंचायोड़ै

गळेटियै सूं लटकतो

माटी रो ढगळ

होय’र गळगळो बोल्यो कै-

‘’थूं किंया घाली चौसंगी

म्हारै पाळ्यै-पोस्यै बूंटै में...

धूड़ थारै सिर में..!’’

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कान्हा शर्मा