आज म्हारै गांव में

होयग्यो

सिस्टी रो उळटफेर

छांटई नीं पड़ी

नीं दिख्यो

बादळ रो कसवाड़

अर,

नीं घूजी धरती अबकै।

हिवड़ै सू उफणतै

ज्वालामुखी रो लावो

भस्मीभूत करग्यो

ओटेड़ा मींगणा

नीं बंधाय सक्या धीज

बुझतै चूल्है नै

बदळाव री भूंड चढ्यो गांव

लोग चावै

विस्फोट सूं

बुझावणी बासदे....

लोह काटै लोह नै।

मिनखाचारो

लेंवतो रैवै टोह

मिनखपर री....।

अर लोग

अंवेरता रैवै

भावी री ओळखाण।

भस्मीभूत भूपड़यां री

भभूत मांय!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली काव्यांक ,
  • सिरजक : भगवान सैनी
जुड़्योड़ा विसै