जा रै डोफा बादळ

कदै इयां

बरस्या करै...

बरसा-बरसा पाणीं

थूं तो ले लियो

मिनख रो पाणीं

फिरै बापड़ो

अब गाणीं-माणीं!

टपकती-टपकती

छेकड़ टपक गई

भींता बिचाळै छात

भींता लुळी उठावण नै

पण पसरगी आंगणै में

सूंएं बिचाळै छात!

ढब!

अब ढब बादळ

भींत चिणावां

उठावां छात

बणावां बात

थारै तांई

आगै सारु!

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम