अबखा कांटाळा,

भाठांळा मारगां रो

कर नै पेंडो

दी दरूजै माथै थापी

'है कोई मांयनै'

बतळावतो रैयो

जाणै म्हैं-

खुद सूं खुद नै

'मांय थूं आय जा

लारलै दरूजै नै

खोल लिरावज्यो

घणै उछाव सूं

निरभे थूं बुलावज्यो

मांय फेरूं खुद नै

निरखज्यो, दिवलै रै च्यानणै॥

खुद सूं होवूं सैमुंडै

इत्तो मोटो साहस

कठै कर पायो भेळो

चाल पड़्यो पाछो-म्हैं।

स्रोत
  • सिरजक : महेंद्र कुमार मोहता ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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