अेक छोटै टाबर री

आंख्यां में हुवै

अेक जीवतौ सपनौ।

सपनै में

अेक लीलोछम रूंख,

उण माथै चीं-चीं करती

रंग-बिरंगी चिड़कल्यां

मीठा गीत उगेरती कोयल

नाचतौ-बोलतौ मोर।

थारी चतर आंख्यां में

हाल हरयौ है अेक सपनौ

जिणमें आप जोखौ

लकड़ी रै मूंघै भाव मुजब

बिरछ रौ वनज

अर आपरै हाथां नाचै

अेक कुवाड़ौ।

म्हनै परतख लखावै

टाबर रै सपनै अर

आपरै कुवाड़ै में

जुगां जूनौ बैर है।

बिरछ री डाळ्यां ओटै

आप काटौ

टाबर रा जीवतां सपना।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : मदन गोपाल लढ़ा ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम