आज दीवारी, काल दीवारी,

थई ग्याहँ बेहाल दीवारी

आवे हे हर साल दीवारी मेऽऽ रियु।

नती पूरवा दीवा में तेल, नती घोर में गोर।

दुकडा नी पण होर नती हेतर सलावु घोर

डील नी हेती खेसी ली दी,

मोगवारी एँ खाल दीवारी,

थई ग्याहँ बेहाल दीवारी मेऽऽ रियु।

नती केने कोई पाए जातु, ताजु केने नती देकातु।

रे सतरी नी सख्या परते, आवा हाल मे रेवु हरते। -

शारे आडी देव गएँ हैं,

तलवारे ने ढाल दीवारी,

थई ग्याहँ बेहाल दीवारी मेऽऽ रियु।

मनक आजे थई ग्यू आएँ मनक हारु वैरी हैं,

प्रेम ने भाइ-चारो सुड़ी घृणा नी हाडी पैरी है

कांगला हेंडवा लागा आजे हंस नी चाल दीवारी मेऽऽ रियु।

क्यारे प्रसन्न इन्द्र थाएँ, फेरी कृष्ण तुके क्यारे गोवर्द्धन

ब्रज एण लोग परत, क्यारे नेरे हाते सब जन

हँसी खुशी ने हाते लइने,

हात में मशाल दीवारी

मटे आएँ जंजाल दीवारी,

सुखी सम्पन्न खुशहाल दीवारी

एवी दीवारी आवे दीवारी मेऽऽ रियु।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : प्रकाश प्रतीक ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
जुड़्योड़ा विसै