हवार थी हांज ने हांज थकी हवार

गरस्ती ना घारां में, धोरु,

गुदा ने खांबाउं उतरी,

आदमी माले आव्यू नै—

आदमी बरद बणी नै रई ग्यो।

आदमी बरद बणी ने रई ग्यो।

उगता दाड़ा नी दौड़-दौड़

एलकार नी आर

अने मोगवारी नी मार

जेट में तपी ने सावण में करवाएला साणा वजु

मई ने मई हलग्यं करे, आदमी मई ने मई, हलग्यं करै।

सावण में आस नं वादरं कंईक छोरई

एटला पेल भादरवा में मन

भराई-भराई आवै

जारे

बस्ता-सोपड़ी, सेतरं फीसं ना

तणाव में —पोग नेसे नै जमीं

रई रई ने खसकबा लागे

तारे

हौवे तारै, मरद...बरद बणी ने रई जाए।

दीवारी आवै, दीवारी आवै

हरक ना दीवा दाड़ी हंजोवे

पण दीवारी नू तेल-लोण, आकं ने अजावै

अंजाएलो आंदरो आदमी-वाट भूली

भम्यस् करै घाट ना घारां में। बरद बणी ने रई ग्यो।

फर फर करतो फागण आवै —कंडक धरास बंढावे

भांग-पतासं-कोंडं-तासं, रातर-गेर रमाड़े

रंगे रंगाई ने भान भूलै के —पासो जेट तपावै

भांग पीदेला भमगांड़ा जेम

फरी फरी ने थाके

ने हां लेवानी घड़ी आवते पेल

धोरु पासू खाम्बे धराई जाए —गरस्ती ना घांरा नू

ने फरते फरते आदमी —वना हेंगड़ं नो

बरद बणी ने रइ जाए।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : घनश्याम प्यासा ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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