अेक प्रीत री आस लेय’र जलमै

पण अणजाणी बात

अणजाणी सोच सूं

कांप जावै छोरयां

डरै, पण दोहरावै मन मांय

इयां तो डरां कोनी म्हैं

माटी री देह-थारी भी-म्हारी भी

ममता री मुळक लेय’र जामी

लुगाई रुखाळण घर री

कळपती, अणमणी, डरयोड़ी

मन री तो समझ्यो कोनी धणी भी

सगळां देखी सूरत सोवणी

अर रैयी सासरै पराई

भांत-भांत री अणूती पीड़

अधलिख्योड़ी कहाणी छोरी।

आंसूड़ां भरीजी आंख्यां

ढूंढती रैवती पडूत्तर

सगळै सवालां रा

जणती टाकर, पोखती परिवार

बरस-बरस खिसकती

बंजर होवती छोरी।

पण इसो सौभाग

पत्थराळी धरा मांय भी

फूटती रैवै हेत री कूंपळ

दया अर ममता सूं भरयोड़ी

अजै भी जामै छोरी।

च्यारां कानी बंद किंवाड़-खिड़क्यां

पण जोह लेवै चानणै रो कतरो

जींवती रैवै छोरयां

घर बणावै छोरयां

हेत जगावै छोरयां।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : मीनक्षी आहूजा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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