हर्यै उण्यारै हेत, चूंटण चव चित चौगणै

मिमझर मांयै चेत, सागां आई सांगरी॥1

ऊँचै मुख सूं ऊंट, लूँगां लबकै लेंवता

चट बाळक ल्यै चूंट, कांट किंटाळी सांगरी॥2

डागां डबकै डोल, खेजडलाँ खाथी फिरै

पाक्यां लाधै पोल, सूंतै लँफ-लँफ सांगरी॥3

गौरी गूंघट गोळ, कुदरत दात कबाड़णै

ल्यावै डाळी लोळ, सांगर पीळै पोमचां॥4

रळा रायतै ओळ, ओथाणै भर ओबरी

झबक अचारां झोळ, मवड़ महींकढ सांगरी॥5

सांगरियां रै साग, करसाणां कमतर चलै

सांगरियां रस राग, सूरां रळी वधावणा॥6

सांगरियां रै साग, जती सती सत पथ वगै

भल मरुधर नर भाग, ओढर उपकारी हवै॥7

साध सेवड़ा वीर, मुरधर भोमी मुळकणा

हाट्यां हठी हमीर, सांगर संतोख्या सकळ॥8

समो हरिया साग, घर करसां कळको घुटै

बोझा खोड़ां बाग़, सबजी खोखा सोवणी॥9

पूगळ पोखत पेट, काळ कडूंबा काटणै

रोपण राज, रुळेट, सांगर रणां सिधावणा॥10

पिसतां सूं ना प्रेम, काजू कोड करां नहीं

नोजां रो ना नेम, खोखा गिणां खुमाणियां॥11

काठ किसमिसी चाव, खारक खुस करणी नहीं

अखरोटां अणभाव, खोखा आणंद ऊमड़ै॥12

दामां बिना विदाम, मारवाड़ मगरै मिलै

लाडो लुळै ललाम, साख सांगरी सिंवरतां॥13

खोखा सांगर खाय, ऊँट उबाणा गूंजवै

छींकळ चेत चबाय, छाळां जंगळ छेकज्यै॥14

सावड़ियां नै सार, सीयाळै ना, सी मरै

भैंस्यां सींगा भार, सांगर बांटो साल भर॥15

गायां गुदळी खीर, सुगरथ सांगर सेंवता

अेवड़ हवै अधीर, केल्यां तुरत तकांवणै॥16

गावै भाभ्यां गीत, साँगर माँग सुवागणी

रफड़ उबाळण रीत, देवर ल्याद्यो देख वन॥17

बोलै मीठा बोल, खोल नव कळी निरमळी

तुरँत ल्यायदो तोल, सागां ‘वेगी’ सांगरी॥18

नटज्योना नखराळ, देवर तेराताळिया

गजबण ठोकै गाळ, सळ लिलाड़ सांगर बिना॥19

देवरियां पण दाय, पातळियां घण प्रेम सूं

उपराड़ै ले आय, सुरड़ी छमकै सांगरी॥20

सांगरियां री साख, सायब क्यूं सूना हुया

लिचपिच लूंबां लाख, हाँड्यां हळां लेजावणी॥21

के खावांला काम, फोड़ा भाख भुगतियां

रोटी मिरचां राम, सांगरियां बिन सारज्यो॥22

रसिया थे रँग राज, तोड़ सिधाज्यो सांगरी

म्हैं वासणियां मांज, मुफत मंगाद्यूं केरिया॥23

भँवरां भिणकै भार, जेठ जळेबी जीसणी

बळ कांदां बेकार, साग नहीं बिन सांगर्यां॥24

मायड़ मन री काढ, बेटां आगळ बिरगरै

ओखा ऊँटां चाढ़, समझ मँगावै सांगरी॥25

लाल लगावण नाँय, खोड़ खेजड़ा मोकळा

लग वपरावो ल्याय, सजै अचारां सांगरी॥26

लख लोटड़िया भाळ, तख तागड़ियाँ चींपड़ी

लँफै अंकोड़ां आळ, ख्याल सांगरी खेजड़ां॥27

घणी कोछियै घाल, ताल तावड़ै तोड़कर

च्हैरा कर चुट लाल, लाल सांगरी ल्याविया॥28

अंकोड़ै विरव़ाळ, हुकम सांगरी हालणा

बग्गर झाड़ै बाळ, स्वादीसार सिरावणा॥29

भायेलां रँग भाग, खोखो चोखो मेवड़ो

पण मेघां सिर पाग, खाँग बंधावै खेजड़ी॥30

सांगर साग सुवाद, सबजी धर संतोखणै

बांगर फसलां वाद, देस दईरो देवरो॥31

सेढळ धोकण सार, सांगर कैरां-काचरी

ठंडै आब अचार, ओगण उबरण खाँखरा॥32

चेत सांगरी चूंट, भाज भरण भेळीकरण

खटकै जावै खूट, दरसण वरसां सूं हवै॥॥33

सिर जाँटी रै साग, तोड़ सकै तो तोड़ ले

राफ कैरियै राग, साल पछै सुध सांगरी॥34

खाणै निजरै खान, मान महिपत गंग गुण

विमद विदेसांवान, सागां चाही सांगरी॥35

छमकण छठै छमास, आस अचारां री रवै

ख़टरस सीधै खास, स्वाद रुचण रँग सांगरी॥36

जेठ जलेबी प्यार, चेत चावळां रै पछै

सबद सांगरी सार, आडी अरथ उघाड़णै॥37

स्रोत
  • पोथी : दस दात ,
  • सिरजक : साहित्य महोपाध्याय नानूराम संस्कर्ता ,
  • प्रकाशक : लोक साहित्य प्रतिष्ठान, कालू-बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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