उमस री घुट
आयां भगावै आंधी
पण बैरण बाजै घणी
तो डरै बापड़ौ पांधी
खेत-खळां मांय
अणूंती उमड़ै आंधी
पण
धरा रा धणी
डरजै मती।
छैकड़ डूसकणी
जोर मार्यां पछै
पड़ जावैला मांदी।
नेहचै सूं बाजण दै
बापड़ी नै बट काढण दै,
मन में कांई जाणसी आंधी?