भरम मै फँस्या,
अठी सूँ उठी डोलता-
सूरज-चाँद अर तारा,
घणाँ टुकड़ाँ मै बॅंट्यो
लीलो आसमान।
गेला गोड़े की ढ़रड़ी भींत-
बखरी ईंटा के बीच
झाईं देतो-भाटो,
गेले चालता
पहिया,
खुरां,
पावां सूं उड़'र
जीं पै, छाती, जाती
धूळ की परताँ॥
उकळा'र
चीखवो चावै छै
पण
तरखा सूं पड़्या
कण्ठ-सूळ
मैल्याडी ई
दाब द्ये छै उकळाव नै-
तो
उकळायो तातो खून
बणतो जावै छै;
पाणी-
अर
बरसै छै नैणा सूं
बना गाज्याँ
बना घोर्यां
बना मौसम
बेकार।