आखौ स्हैर भाजै

मोटर-गाडी दाईं

अज्यास्या मिनखां री

हाणचूक भाजादौड़

जाणै खिंडागयौ

कुण कीड़ीनगरौ।

रोळौ-बैधौ आथमज्या

सड़कां सुस्तावै

मोटर-गाड्यां थाकज्या

जीव-जीनावर जा बड़ै

खोह-खोळी में।

पण जका कुरळावै

अणजाणी पीड़ सूं

अेक अणजोगती

मांयली सून्याड़ सूं

वै कमरै मांय ढक्योड़ा

ऊभज्या टेबल माथै।

स्यापै मांय करै अेकला

आखी रात बंतळ

बणावै मींत अणगिणत

ओलै-छान करै सगपण

रचावै कड़ूम्बौ

घड़ै नवी स्रस्टी

आपरै कड़ूम्बै सूं

कोसां आंतरै।

विलम जुड़ाव रौ

आणजाण सूं साथीपौ

घ्यार बतळास रौ

डजासणै री तड़फड़ाट

रळनै री खेचळ

अणथकी लीला।

धरणी नीं थमै

फेरूं वा आकळ

आंख्यां साम्हीं जगमगाट

भीतर अंधार।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफिर’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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