म्हारा गांव में बी

पूगग्यो किरकेट

अस्यां!

दो जमात सूं जादां

नीं पढ सक्यां

छोरां बी

झट्ट दनीक सूं

बता दै, छै

दस-पांच

चोखा खेलणियां

खिलाड़ियां रा नांव।

खाती सूं

घड़ा लावै छै बल्लो

गोडै-नीड़ै की उंदाळु

बाड्यां में

सिंढ्यां पड़या तांई

गद्दीदार गेंद रै

लगावै छै पाट्या।

गांव रा छोरां

मोट्यार

देखै छै

रोज रात नै

कदी नीं पूरा होबाहाळा

सुपना अर! दिन उगतांई

उछरज्या छै

छैळ्यां में

गांव-घेर कै सागै

काख में रेडियो

दबा’र।

फैर! सुणै छै

चाव सूं

हिन्दी मांय

खेल रो लेखो-जोखो

कोमेन्ट्री

अर अंगरेजी मांय

आती बगतां

टचकारे

पुचकारै छै

छैळ्या

गांव घेर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : ओम नागर ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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