भोगी कै अणहद्द विवाद।

जोगी साथै अणहद नाद।

नित सजी निरभीक सुतंत्र,

जोगी नीं जाणै अवसाद।

भोगी करै नहीं परहेज,

जोगी कै संजम मरजाद।

जोगी भणै राम का छंद,

भोगी कै छळ—छंद फसाद।

जोगी जागै, भोगी सोय,

तन आळस, मन घोर प्रमाद।

मिताहार जोगी कै हाय,

भोगी जाणै सत्तर—स्वाद।

जंची' बिहारी' जे नहिं बात,

कर थारी राधा नैं याद।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा जनवरी-मार्च 2015 ,
  • सिरजक : बिहारी शरण पारीक ,
  • संपादक : अमरचन्द बोरड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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