म्हनैं ठाह है-

भाग माथै

पड़्या है भाठा!

कैवतो थको मिनख

चढ जाया करै

आपरी आंगळियां रै भरोसै

भाठां री दुकान माथै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : रमेश भोजक 'समीर'
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