जद

मौसम अणाचूक बदळ जासी

उणा री बोलती बंद हो जासी

वै-आपणौ मून्डो ढाँक'र

छाना माना खिसक जासी

वै

आपणी लाज ने ढाँकता

डींग हांकसी

अचरज बतासी

इणी'ज भाँत

मौसम बदळ जावण रो

मातम मनासी

साँच नै

गलत साबित करण री कोसिस करता

उण ने लीर-लीर करसी

वायरा में बातां रा तीर फैंकसी

वै सदीव

ओ'ईज करता आया है

अणूता पाणी रा जाया है

जद-जद भी भोमका पे

खुसी री फसल लहलहावै

उणां रे मन कोनी भावै

वै वायरा में घोळे बारूद री गंध

अर, समै री सूली पे

मिनखपणां ने लटकावै

मिनख-मिनख ने

नफरत रो निसाणो बणावै

वै हँसता, मतरौळ करता

फैर-फैर आवसी

थाने सिखावसी

कविता लिखण री तमीज

अर थे उणां ने

आपणो भगवान मान’र

पळक-पावड़ा बिछावोगा

रसगुल्ला सजावोगा

फळ/बिस्कुट खिलावोगा

चाय/काफी पिलावोगा

अर वै

परहेज री बाता करता

सगळो सफाचट कर जासी

आगली दावत में

दारू-मांस होवण रे बारे में

भाषण सुणासी

वै थारे खातिर

सब कुछ कर सकै

उणा रा हाथ लाम्बा है,

वै चावै तो थानें सबसूं ऊँचा बिठावै

अर वै चावै तो थानै पाताळ पुगावै

भायलां

मैं साँच कैवूं

वै सब कुछ कर सकै

क्यू’क वै

थांरा हेताळू है

थांरी निजरां में

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : कमर मेवाड़ी ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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