हे कविराज!

थूं मोकळा बखाण्या बिड़द,

वीर रै ओळाव मांड्या जुद्ध रा चितराम,

हित्या नै लुकोयनै मांडी सती-महिमा!!

डोळी-परंपरा अर दुरभी संधि-

नीं आयी थारी निजरां कदैई,

सुणी थनै तलवारां री टणकार

नीं सुण्या तौ हुरमखानै रा बुसबुसिया!

और तौ और

थनै नीं दीख्यौ-

घांणी पीसतौ अर कोरड़ा खावतौ

वौ मिनख जिकै रौ फगत दोख इत्तौई

कै वीं राज री गळत बात रौ साम्हणौ कर्यौ।

हे कविराज!

थूं अबार

वीं रीत नै पाळै, पोखै,

अरज-

अबै तौ कीं बदळ!

बिड़द रा गीत तौ हरेक गा-सकै

हिम्मत है तौ राज रै अन्याव रौ

साम्हणौ कर

साच बोल!

बिड़द छोड!!

हे कविराज!

कीं तौ बदळ...

देख- बगत पसवाड़ा फोरै!!

स्रोत
  • सिरजक : दुलाराम सहारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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