बादळ री गरज्यां सूं बरस्यौ मेहौ सारी रात हे

हळ बैल्या ले चालौ खेत पे हुयौ सजन परभात हे!

धणी तपी सूरज सूं धरती होगई लाल अंगारजी

ज्यूं साजण सूं बिछड़्यां पाछैं दुखड़ा मिळै हजारजी

सूख गयौ धरती रो जोबन हर्‌यौ भर्‌यौ संसारजी

उजड़ जाय ज्यूं सतवंती रो बिन साजन सिणगारजी

सूख गयौ ताळां रो पाणी, ज्यूं आंख्यां री बात है!

बादळ री गरज्यां सूं...

बूंद बूंद संदेसौ बादळ धरती कह्यौ सुणायजी

हिवड़ौ उमग्यौ इण धरती रो भरग्या नदी तळाव जी

साजण रा प्रावण पे हरख्यां चोखा कर्‌या बणावजी

हरी चूंनड़ी ओढ़यां कामण जाणै मुळकी जायजी

सतरंगी मोत्यां री माळा सुन्दर लागै गात है

बादळ री गरज्यां सूं...

दे बीजां री भेंट करां इण धरती रो सनमान जी

वखत पड़्यां पे म्हांनै थांनै चोखौ देसी दानजी

नुंवैं पसीनै सूं दो इणनैं साचौ सनमानजी

बूंद बूंद इमरत कर मानां इमरत माटी जाणजी

इण माटी में रळ्यां पछै ही कंचण होसी गात हे

बादळरी गरज्यां सूं बरस्यौ मेहौ सारी रात हे

हळ बैल्यां ले चालौ खेत पे हुयौ सजन परभात है!

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : रमेशचन्द्र शर्मा ‘इन्दु’ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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