धरती माथै ऊभा मिनख

मेंह री उडीक में

आभै कानी

बाको बावै

डोभा फाड़ै

जिंया पगार पावणिया

एक तारीख नै उड़ीकै

पण काळा बादळ

काळी कमाई सूं कजलिज्योड़ा

धन रा लोभीड़ा

गड़ गड़ावंता फांफीड़ा

बांट नीं जाणौ

भेळो इज करणो जाणौ

जणां तो

तसकरां दांयी

बॉर्डर पार जावै।

पण रुई वरण

धोळा धप बादळ

टोटै सूं टूट्योड़ा

दिवाळिये मिनख दांयी

उंतावळा-उंतावळा

दूजी ठौड़ जावै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1987 ,
  • सिरजक : हनुमान दीक्षित ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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