सज धज'र

आई

बिरखा

मुळकती,

धुळकती,

नखरेली,

बिंदणी सा धर पग

होळे होळे

आई

धोरा धरती रे देस।

सागै लियोडी

असुझी ओळूंदी

आंधी

अर वायरा बीरा सागै!

वायरा अर आंधी

जिस्या बिण चाहा

पावणा ने काठी छाती कर

लगायो गले।

उडीक तो

बरखा री थी

बा आई

शरमाती,

बळखाती,

अपयायत लेर,

हेत रे सागे

पग मांडणा करिया।

जीव हरखयो

सगला

सासरा आळा रो

अठै

सासरा रो आसरो

बरखा बिनणी तो है।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : शंकर दान चारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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